आबनूस

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एक धारीदार आबनूस लकड़ी

आबनूस अत्यधिक सघन काली काष्ठ तथा तत्संबंधित वृक्षों के लिए एक सामान्य नाम है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो ये डायोस्पाइरोस वंश की बहुत सी जातियों से मिलती है, परंतु कभी-कभी दूसरी भारी, काली (गहरे रंग की) लकड़ियों को भी आबनूस कहा जाता है। सर्वश्रेष्ठ आबनूस संभवताः डायसेपाइरोस एबेनम से मिलने वाली लकड़ी है, जो दक्षिण भारत व श्रीलंका की मूलवासी है, इसका श्रीलंकाई आबनूस नाम से व्यापार किया जाता है।

यह पौधा तिंदुक कुल एबीनेसी का सदस्य है। इसके अन्य नाम इस प्रकार हैं: तिंदुक स्फूर्जफ, कालस्कंध (संस्कृत), गाम, तेंदू (हिंदी)।

यह समस्त भारतवर्ष में पाया जाता है। यह एक मध्यप्रमाण का वृक्ष है जो अनेक शाखाओं प्रशाखाओं से युक्त होता है तथा सघन, सदाहरित पत्तियों से आच्छादित होता है। तना कठोर तथा कृष्ण वर्ण का होता है। इसकी पत्तियाँ चिकनी, आयताकार पाँच से लेकर आठ इंच तक लंबी तथा डेढ़ दो इंच चौड़ी होती हैं। इसका पुष्प श्वेतवर्ण और सुगंधित होता है। फल गोल, कठोर तथा गुरचई रंग का होता है। पक जाने पर इसका रंग पीला और स्वाद मधुर हो जाता है। प्रत्येक फल में वृक्काकृति शरीफे के समान छह से लेकर आठ तक बीज होते हैं। फल में कषाय द्रव्य (टैनिन, पेक्टीन और ग्लूकोस) होता है। कच्चे फल, छाल ओर पुष्प में कषाय द्रव्य बहुत होता है। इसके अतिरिक्त इसमें ग्लूटौनिक अम्ल की भी १२.८% मात्रा होती है।

इसकी लकड़ी का उपयोग इमारती सामान आदि बनाने में किया जाता है। औषधि के रूप में इसकी छाल, फल, बीज तथा पुष्प का उपयोग किया जाता है। इसकी छाल का लेप फोड़ों पर किया जाता है तथा रक्त स्राव होने पर इसका चूर्ण छिड़कने से रक्त बंद हो जाता है। इसके क्वाथ का प्रयोग रक्तविकार तथा कफ-पित-जन्य रोगों में करते हैं। यह योनिवस्ति प्रदर, रक्तस्राव तथा गर्भाशय की श्लेषमकता के शोथ को दूर करने में भी उपयोगी है। इसकी छाल का क्वाथ प्रमेह, शीघ्रपतन, रक्तप्रदर तथा श्वेतप्रदर में भी दिया जाता है। इसके अतिरिक्त कुष्ठ, विषमज्वर, सर्पदंश और चमड़ा रंगने के काम में भी इसकी छाल का उपयोग किया जाता है।